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Dr. Deepti Priya 

Psychologist and Author

दीप्राणिका.१ काव्य संग्रह

दीप्राणिका.१ काव्य संग्रह पुस्तक में छब्बीस कवितायेँ चार अध्याय (एक सौ तीस पृष्ठ) में संकलित है।

Copyright © Deepti Priya 2018

अध्याय १ - स्वयं की खोज

     स्व-अनुभूति सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है।

     अधर्म की भूमि पर ना झुका तू अपना सर,

     खोज स्वयं की धरती, खोल तू अपने पर !

अध्याय २ - प्रश्न हैं कई

     प्रश्नों की पारावार यामिनी,

     स्मृति अपांग, श्रुति स्वामिनी।

अध्याय ३ - कृतज्ञता वात्सल्य का आधार

     जीवन की कायाग्नि में, ओस से मोती तक,

     कण कण में उपहार आशिष, क्षण क्षण मैं नतमस्तक!
अध्याय ४ - तू ही शक्ति

     अंधकार हो जब घना, शक्ति का आह्वान कर!

     जऱ रूप को जला, स्वयं को शक्तिमान कर!!

संभव है की दीप्राणिका.१ की कवितायेँ पढ़ कर आपको वेदना की अनुभूति हो, आप पाएंगे की आपके अन्दर की वेदना भी सकारात्मक भाव उत्पन्न कर रही होंगी, भाव जो आपको अपने वेदना मैं भी सुख की अनुभूति करायेंगी, अपने अंतर्ध्वनि की ओर आकर्षित करेंगी। मेरी रचनाओं का उद्देश्य पाठकों में ऊर्जा का संचार करना और उनको अपनी अंतर्ध्वनि की तरफ आकर्षित करना है।

मेरा प्रयास दीप्राणिका शृंखला की आने वाली सभी काव्य संग्रह में अपने सक्रिय सकारात्मक प्रयास को बेहतर करना है। आशा करती हूँ की आप दीप्राणिका.१ पढ़कर कविताओं पर अपना विचार और पढ़ने के बाद अपनी अनुभूति साझा करेंगे।

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