शीर्षक: बच्चों में आत्मसम्मान बढ़ाएं
लेखिका: डॉ दीप्ति प्रिया
पत्रिका: चित्रांगन (स्मारिका २०२१)
माता-पिता व परिजन की छोटी-बड़ी सभी अभिव्यक्तियां संबंधों को परिपूर्ण या अपूर्ण बनाती हैं और आत्मविश्वास को सुदृढ़ या अदृढ़ करती है। जरूरत है सचेत और सतर्क पालन-पोषण की। बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज है अपना समय और अच्छे संस्कार (अवचेतन व चेतन मन पर अंकित सकारात्मक धारणाएं), आवश्यकता निरंतर सीखने की भी है। एक श्रेष्ठ मनुष्य का निर्माण सौ विद्यालय को बनाने से भी बेहतर है। (विवेकानन्द साहित्य से उद्धरण)
जीवन के बहुमूल्य पाठ को सिखाने में हमारी असफलता का अर्थ होगा कि हम अपने बच्चों को एक बेहतर जीवन से दूर कर रहे हैं। इसका मतलब यह भी है कि हम स्वयं भी बेहतर जीवन से दूर हैं और मानवता के लिए एक कठिन भविष्य का पोषण कर रहे हैं। अनैतिक जीवन शैली; विकृत प्रेम संबंध, वैवाहिक कलह; सामाजिक तनाव, वैचारिक संघर्षों में बढ़ती संकीर्णता व असमानता; महिलाओं, बच्चे, भ्रूण, आदि के खिलाफ अपराध; नकारात्मक विचारों का उदय और ऐसे विचारों के प्रति आकर्षण; अवसाद व निराशा की स्थिति आदि को बहुधा देखा जा सकता है। कार्यस्थल या घर पर तनाव बहुत आम बात है और समस्या यह है की इसे सामान्यीकृत भी किया जा रहा है (लोग इसे सामान्य मानने लगे हैं)। यह आमतौर पर माना जाता है कि लोग उन परिस्थितियों में तनाव महसूस करते हैं जब, उनके पास बहुत सारी जिम्मेदारियां होती हैं; बहुत अधिक काम का होना; स्थितियों पर नियंत्रण की कमी; सहकर्मी का असहयोगात्मक व्यवहार व अपमानजनक टिप्पणी; अवसर की कमी और पीछे छूट जाने की भावना / डर हो। विडम्बना यह है कि महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक प्रश्नों पर शायद ही कभी प्रमुखता से चर्चा की जाती है। स्कूल हो, घर या कार्यस्थल - जब बच्चे आत्मसम्मान और सुरक्षित महसूस करते हैं, तब उनके स्कूल में सफल होने और व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने की अधिक संभावना होती है। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, वे समस्याओं का सामना करना और जीवन में आने वाले किसी भी दबाव वाली परिस्थितियों को बेहतर प्रबंधित करने की क्षमता विकसित कर पाते हैं। जीवन के बाद के चरण में प्रशिक्षण व अभ्यास भी आत्मविश्वास विकसित करने में मदद करता है। बेहतर जीवन के लिए, नियमित शिक्षा के साथ-साथ जीवन के बहुमूल्य पाठ को विकास के चरण के दौरान सिखाना सबसे उत्तम प्रयास है। आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास सफलता या असफलता के लिए हमें तैयार करता है, हमारी क्षमताओं के उपयोग को निर्धारित करता है, बिना किसी संघर्ष के सकारात्मक सीमाओं को विकसित करने में भी मदद करता है। माता पिता के सकारात्मक व नकारात्मक अभिव्यक्ति का प्रभाव सबसे शक्तिशाली व दूरगामी पाया गया है। माता-पिता वे दर्पण हैं जिसके माध्यम से बच्चा स्वयं को देखता है व समझता है। वह उसी प्रतिबिंब को स्वीकारता है जो उसके माता-पिता के व्यवहारों व वचनों से वह स्वयं के लिए पाता है। माता पिता उससे जैसा व्यवहार करते हैं वह सदा के लिए बच्चे के मानस पटल पर अंकित हो जाता है और वही बच्चे की स्वयं के प्रति धारणा का हिस्सा बन भी जाता है।
ठहर जरा,
दे चुटकी भर ध्यान,
क्या मांगे तेरी संतान?
प्रेम, काल, रक्षा और मान,
सुनते हों सदा तेरे कान!
दो मिस्री से बोल हों,
कांधों पर तेरा हाथ हो!
आलिंगन में आंसू मिटते,
दर्द में भी तू साथ हो!
शिक्षा दीक्षा से भी ऊपर,
उनका प्रेम है अधिकार,
कर पूरी ये उनकी मनसा,
प्रेम पाठ का दे वरदान!
|| -- डॉ. दीप्ति प्रिया
चित्रांगण पत्रिका में प्रकाशित पूरा लेख बाल विकास पर कुछ महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य दे सकता है, साथ ही यह हमारी वर्तमान चुनौतियों को समझने में भी मदद करेगा और अंततः हममें से कुछ को अपने घर में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करेगा। संकल्प अगर जीवन को बेहतर करना है तो उपाय भी जीवन को बेहतर करने का मिलेगा, सकारात्मक भावों की ही वृद्धि होगी। सचेत रहने और सकारात्मक प्रयासों से जीवन के अप्रत्याशित मोड़ों में सुखद सुधार होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। श्री Aanand Das जी और मुकेश दत्त जी को हार्दिक आभार मेरा लेख आपकी पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए।
डॉ. दीप्ति प्रिया
मनोवैज्ञानिक, कवयित्री व लेखिका
[प्रकाशित काव्य संग्रह: “विमोह”, “दीप्राणिका”]