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Dr. Deepti Priya 

Psychologist and Author

साहस का घोड़ा - (काव्य संग्रह दीप्राणिका.१)

 

साहस का घोड़ा

(काव्य संग्रह दीप्राणिका.१)

Copyright © Deepti Priya 2018

साहस का घोड़ा सजा कर

संयम के हो रथ पे सवार,

अर्जुन के हों नेत्र बंधु

देखें बस लक्ष्य लौ निहार!

 

गर हो खंडित सहस्र तुम

पथिक बटोर स्वयं पराग,

मूल्यवान ये हर एक कण हैं

उठा संकल्प हो जा तैयार!

 

पथ कठिन, अपथ सा दिखता

हो प्रतीत भुजंग समान,

लक्ष्य लौ प्रज्वलित दिनकर सी

स्मृति उसकी, कर मन बलवान!

 

राह में अनुभूति प्रलीन की

दृष्टि उन पराग पे डाल,

लघु लक्ष्य की जय कर पहले

बढ़ता जा शम्यत लगातार!

 

अंतहीन ये यात्रा तुम्हारी

अनुकम्पा, करुणा आधार,

राह में ये जो लघु विजय हैं

करें अन्तहीन का फल साकार!

 

डॉ. दीप्ति प्रिया

(काव्य संग्रह दीप्राणिका.१)

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