प्रिय दीप्ति, तुम्हारा काव्य संकलन "विमोह" बहुत अच्छा लगा। इस छोटे से पुस्तक में तुम्हारे अंदर के गंभीर मनोवैज्ञानिक अनुभव, आध्यात्मिक विचार, दार्शनिक सोच एवं काव्य कौशल का समन्वय देखने को मिला है। कितनी निपुणता से तुमने हजारों वर्षों पहले के पौराणिक चरित्रों के व्यक्तित्व, गुण-अगुण तथा कर्मों का विश्लेषणात्मक ढंग से समीक्षा करते हुए आज के परिप्रेक्ष्य में एक आधुनिक व्यक्ति के आंखों में वे कितना महत्वपूर्ण है उसे समझाने की कोशिश किया है। आप के आध्यात्मिक दर्शन पर गुरुदेव परमहंस योगानन्द जी के श्रीमद् भागवत गीता पर विचारों का स्पष्ट प्रभाव है, जो व्यवहारिक एवं वैज्ञानिक तौर पर युक्ति सम्मत है। मुझे इन कविताओं को पढ़ने में बहुत आनन्द आया एवं मेरी कन्या-समान, स्नेह-भाजन छात्रा, कवयित्री और चिंतक डॉ दीप्ति प्रिया के लिये गर्व का अनुभव कर रही हूँ। मैं उनके लिए और उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ। सप्रेम- डॉ रत्ना बनर्जी [सेवानिवृत्त, प्रोफ़ेसर - निर्मला कॉलेज – रांची] |